Tuesday, 23 February 2016

शाश्वत प्रेम

किसी को चाहो तो फिर उम्र भर उसी को चाहो,भले ही वो आपको चाहे या न चाहे क्या फर्क पडता है।
सच्चा प्रेम शाश्वत है, उसे मिटाया नहीं जा सकता। कुछ देर के लिए हम ये नाटक कर सकते हैं कि अब प्रेम नहीं है, कुछ देर के लिए
हम प्रेम के एहसास को बाँध सकते हैं परन्तु वो  हर बंधन तोडकर पहले से कहीं अधिक मजबूती से उभर आएगा।
प्रेम को पहचानना कोई मुश्किल नहीं है, वैसे तो हमें हर रोज किसी न किसी के प्रति आकर्षण होता है। किसी की बातों पर,किसी के रूप पर, किसी के गुण पर हमारा आकर्षण होता है और समस्या तब होती है जब हम इसी को प्रेम समझ लेते हैं। इस प्रकार तो हमें हर रोज किसी न किसी से प्रेम हो जाता है परन्तु प्रेम तो किसी एक पर अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने को कहते हैं।
जब हमें प्रेम होता है तब सभी दूसरे आकर्षण समाप्त हो जाते हैं, किसी और की तरफ आप आकर्षित नहीं होते हैं। जब किसी और को निहारना भी स्वयं से बेइमानी लगे, तब ये समझना चाहिए कि हमें प्रेम हो गया है।

प्रेम में पीडा नहीं होती, यह बात भी शाश्वत है। प्रेम और पीडा तो विपरीत दिशा में जाने वाले रास्ते हैं। प्रेम में तो आनंद का अनुभव होता है, प्रेम और आनंद एक साथ चलते हैं, जबकि घृणा और पीडा एक साथ।
प्रेम में पीडा का अनुभव उन्हें होता है जिन्हें वास्तव में आकर्षण होता है, और उन्हें वो आकर्षण ही प्रेम प्रतीत होता है। आकर्षण टूटता जरूर है चाहे कितना ही मजबूत हो, और तभी हमें पीडा होती है। इसी पीडा को हम प्रेम की पीडा कह देते हैं जबकि वास्तव में वो आकर्षण टूटने की पीडा होती है।
प्रेम में आनंद ही आनंद है, और यदि प्रेम एकतरफा है तो विरहाग्नि भी नहीं होती......
To be continued

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